संत जला रहे शिक्षा की ज्योति
महात्मा गांधी चित्रकूट ग्रामोदय विश्वविद्यालय |
चित्रकूट दुनिया भर में धर्म और आस्था के केंद्र के रूप में विख्यात चित्रकूट में अब संतजन शिक्षा की अलख जगा रहे हैं। नानाजी देशमुख के प्रयास से स्थापित चित्रकूट ग्रामीण विश्वविद्यालय से शुरू हुआ सफर लगातार मंजिल की ओर बढ़ रहा है। पूजा और श्रद्धा के लिए जाने जाते रहे संत इस सफर को दिशा दे रहे हैं।
नानाजी देशमुख ने अनुसुइया आश्रम के महंत स्वामी भगवानानंदजी महाराज के आग्रह पर वर्ष 1991 में देश के पहले ग्रामीण विश्वविद्यालय की स्थापना की थी। नानाजी ने इसका लक्ष्य धर्मनगरी में शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वावलंबन एवं सदाचार के लिए काम करना निर्धारित किया था। उन्होंने धर्मनगरी में दीनदयाल शोध संस्थान के माध्यम से उद्यमिता विद्यापीठ, कृषि विज्ञान केन्द्र, सुरेन्द्रपाल ग्रामोदय विद्यालय, गुरुकुल संकुल, शैक्षणिक अनुसंधान केन्द्र, दिशादर्शन केन्द्र, जन शिक्षण संस्थान, आजीवन स्वास्थ्य संवर्धन महाविद्यालय, गौविकास एवं अनुसंधान केन्द्र, रामनाथ आश्रमशाला, कृष्णादेवी वनवासी बालिका आवासीय विद्यालय, परमानंद आश्रम पद्धति विद्यालय जैसे कई संस्थान खड़े किए।
नानाजी देशमुख ने अनुसुइया आश्रम के महंत स्वामी भगवानानंदजी महाराज के आग्रह पर वर्ष 1991 में देश के पहले ग्रामीण विश्वविद्यालय की स्थापना की थी। नानाजी ने इसका लक्ष्य धर्मनगरी में शिक्षा, स्वास्थ्य, स्वावलंबन एवं सदाचार के लिए काम करना निर्धारित किया था। उन्होंने धर्मनगरी में दीनदयाल शोध संस्थान के माध्यम से उद्यमिता विद्यापीठ, कृषि विज्ञान केन्द्र, सुरेन्द्रपाल ग्रामोदय विद्यालय, गुरुकुल संकुल, शैक्षणिक अनुसंधान केन्द्र, दिशादर्शन केन्द्र, जन शिक्षण संस्थान, आजीवन स्वास्थ्य संवर्धन महाविद्यालय, गौविकास एवं अनुसंधान केन्द्र, रामनाथ आश्रमशाला, कृष्णादेवी वनवासी बालिका आवासीय विद्यालय, परमानंद आश्रम पद्धति विद्यालय जैसे कई संस्थान खड़े किए।
जगद्गुरु स्वामी रामभद्राचार्य महराज ने भी 1996 को दृष्टिहीन विद्यार्थियों के लिए तुलसी प्रज्ञाचक्षु विद्यालय की स्थापना की। विकलांगों की उच्च शिक्षा के लिए 2001 को जगद्गुरु स्वामी ने दुनिया के पहले विकलांग विश्र्वविद्यालय की स्थापना की। यहां पर दूरवर्ती शिक्षण की भी व्यवस्था है। विश्वविद्यालय में विकलांग विद्यार्थियों के लिए अधिकांश सुविधाएं नि:शुल्क या फिर नाममात्र के शुल्क पर उपलब्ध हैं। फिलहाल यहां उ.प्र., बिहार, म.प्र. के विद्यार्थी ही ज्यादा है, कुछ विद्यार्थी असम, महाराष्ट्र, छत्तीसगढ़, उत्तराञ्चल से भी आए हैं। जगद्गुरु के तुलसी-पीठ आश्रम में छात्राओं को छात्रावास सुविधा मिली हुई है। इसके अतिरिक्त आश्रम परिसर में ही प्रज्ञाचक्षु (नेत्रहीन), मूक-बधिर एवं अस्थि विकलांग बच्चों के लिए प्राथमिक पाठशाला से लेकर उच्च माध्यमिक स्तर तक विद्यालय भी चलता है और अध्ययनरत सभी बच्चों को आवास, भोजन, वस्त्र इत्यादि सुविधाएं भी नि:शुल्क प्राप्त हैं। स्वामी रामभद्राचार्य के स्वप्नों को साकार करने में उनका त्याग भी अवर्णनीय है। स्वामी जी की छत्र-छाया में रहने वाले सैकड़ों बालक अनुसूचित जाति-जनजाति से सम्बंध रखते है, कुछ मुसलमान भी हैं। जांत-पांत के भेद से परे विकलांग देव की सेवा में लगे स्वामी रामभद्राचार्य कहते हैं- "भगवान की कोई जाति नहीं होती। विकलांग मेरे भगवान हैं तो इनमें जाति कैसे हो सकती है।"
श्री रविशंकर जी महाराज (रावतपुरा सरकार) ने श्री रावतपुरा सरकार संस्कृत उमा विद्यालय की स्थापना की। 2008 में श्री रावतपुरा सरकार कॉलेज ऑफ एजुकेशन के अंतर्गत बीएड एवं डीपीएड और 2009 में एमएड का पाठ्यक्रम शुरू हुआ। सत्र 2012-13 में श्री रावतपुरा सरकार प्राइवेट इंडस्टि्रयल ट्रेनिंग इंस्टीट्यूट का भी शुभारंभ किया गया। धर्मनगरी में शिक्षा के क्षेत्र में श्रीरणछोर दास जी महराज द्वारा स्थापित श्री सदगुरु सेवा संघ ट्रस्ट के जरिये 1980 में विद्याधाम की स्थापना की गई, जिसका नाम बाद में सद्गुरु शिक्षा समिति रखा गया। इसके तहत श्रीराम संस्कृत महाविद्यालय, संगीत विद्यालय, विद्याधाम उच्चतर मा. विद्यालय, सद्गुरु पब्लिक स्कूल, कंप्यूटर शिक्षा, सद्गुरु नर्सिग विद्यालय, सद्गुरु नेत्र सहायक प्रशिक्षण केंद्र व सहकारी महिला समिति केंद्र चल रहे हैं।
Comments
Post a Comment