कामदगिरि
कामद भें गिरि राम प्रसादा।
अवलोकत अपहरत विषादा।।कामद भें गिरि राम प्रसादा।
अनके कूटं बहुवर्ण कूटं, श्री चित्रकूटं शरणं प्रपद्य।।
.चित्रकूट के मुख्य देव कामतानाथ हैं जो कामदगिरि पर विराजमान हैं। कामदगिरि की परिक्रमा और दर्शन करने से व्यक्ति की सभी मनोरथ पूर्ण होती हैं। पांच किलोमीटर की परिक्रमा उत्तर प्रदेश और मध्य प्रदेश के बीच आधी-आधी बटी है। इस पर्वत के चार द्वार चारों दिशाओं में है। जिनमें भगवान राम के विर्ग्रह रुप कामतानाथ विराजमान है। प्रथम द्वार दर्शन करके कामदगिरि की परिक्रमा आरम्भ होती है। पर्वत के चारों ओर पक्का परिक्रमा मार्ग बना है। परिक्रमा में मुखारबिंद, साक्षी गोपाल, भरत-मिलाप, बरहा हनुमान जी, सरयू धारा, पीलीकोठी और बिहारी जी आदि कई देवालय हैं। कामदगिरि के दक्षिणी ओर एक छोटी पहाड़ी पर लक्ष्मणजी का एक मंदिर भी है। एेसा मान्यता है कि वनवास में लक्ष्मण जी यहीं रहा करते थे। यहीं से भगवान राम व माता सीता की पहरेदारी करते थे।
भरत मिलाप मंदिर
रामघाट
मत्यगेंद्रनाथ स्वामी
मत्यगेंद्रनाथ स्वामी का मंदिर मंदाकिनी नदी के तट पर रामघाट में स्थित है। ऐसी मान्यता है कि इस मंदिर में विराजमान चार शिवलिंग में एक शिवलिंग भगवान ब्रह्मं और एक भगवान श्री राम ने स्थापित किया था। ब्रह्मा जी ने सृष्टि की रचना के लिए रामघाट स्थित यज्ञदेवी अखाड़ा में यज्ञ किया था। 108 कुंडीय यज्ञ से मदमस्त हाथी की तरह झूमता हुआ एक शिवलिंग प्रगट हुआ था। जिसकी स्थापना भगवान ब्रह्मं ने मत्यगेद्रनाथ के रूप में रामघाट में की थी और उनको चित्रकूट का क्षेत्रपाल नियुक्त किया था। इसीलिए जब भगवान श्री राम यहां पर वनवास काटने आए तो उन्होंने चित्रकूट निवास के लिए स्वामी मत्यगेंद्रनाथ से आज्ञा ली थी। इसके बाद श्रीराम ने खुद उस शिवलिंग के बगल में एक शिवलिंग की स्थापना की थी। ऐसी मान्यता है कि चित्रकूट आने पर यदि किसी ने मत्यगेंद्रनाथ के दर्शन नहीं किए तो उसको कामतानाथ के दर्शन और कामदगिरि की परिक्रमा का पूर्ण लाभ नहीं मिलता है।
रामघाट में बना यह मंदिर सृष्टि रचना के पहले की याद दिलाता है। एेसा मना जाता है कि ब्रह्रमा जी ने इसी स्थान पर सृष्टि निर्माण के लिए यज्ञ किया था। 108 कुंडीय यज्ञ से मदमस्त हाथी की तरह झूमता हुआ एक शिवलिंग प्रगट हुआ था। जिसकी स्थापना भगवान ब्रह्मा ने बगल में ऊंचे स्थान पर किया था। जिसको आज मत्यगेंद्रनाथ मंंदिर के नाम से जाना जाता है। यज्ञवेदी के बगल से गोस्वामी तुलसीदास की गुफा है जिसमें वह चित्रकूट वास के दौरान रहते थे। सामने रामघाट है। जहां पर बाबा को भगवान राम के दर्शन हुए थे।
चित्रकूट के घाट में भई संतन की भीर तुलसीदास चंदन घिसे तिलक देय रघुवीर।। भगवान राम के दर्शन गोस्वामी तुलसीदास ने रामघाट पर किए थे। पतित पावनी मंदाकिनी का यह घाट आज आधुनिकता से रंगा है पूरा घाट लाल पत्थर के बने है लेकिन घाट पर प्राचीन मंदिर भी देखे जा सकते है। जिसमे प्रमुख भगवान शिव का मत्यगेंद्रनाथ मंदिर, चरखारी मंदिर, भरत मंदिर और यज्ञवेदी प्रमुख है। रामघाट में हर माह लगने वाले अमावस्या मेला में लाखों श्रद्धालु मंदाकिनी में डुबकी लगाते है ।घाट में विशालकाय पुराने मंदिर है तो नदी की शोभा को और बढ़ा देते है। शाम को होने वाली यहां की मां मंदाकिनी की आरती मन को काफी सुकून पहुंचाती है। यहीं पर लोकप्रिय स्थल राघव प्रयाग घाट व भरत घाट है। राघव प्रयाग घाट पर सरयू व पयस्वनी का संगम है। यहां पर राम ने अपने पिता दशरथ का पिंड तर्पण किया था। रामघाट पर वनवास काल में भगवान राम, लक्ष्मण और सीता ने स्नान किया था। इसलिए इसे रामघाट कहते हैं। पुनीत मंदाकिनी नदी में प्रतिदिन स्नान तपस्या से इन्द्रिय शमन और मन निग्रह से समस्त पाप क्षरित हो जाते हैं। सिद्ध महात्माओं के अवगाहन से इसका जल निर्मल होता रहता है। भगवान श्रीराम ने जगत जननी जानकी को स्नान करने की आज्ञा दी थी कि तुम भी यहाँ मेरे साथ स्नान करो। रामघाट पर विशेष अवसरों पर दीपदान किया जाता है। दीपावली के अवसर पर दीपदान का दृश्य यहाँ देखते ही बनता है। जल राशि में दीप मालिकाओं की कतारों को लहरों पर लहराते देखकर मन मुग्ध हो जाता है। यह एक ऐतिहासिक घाट है, जिससे अनेक कथाएँ एवं स्मृतियाँ जुड़ी हैं।
मत्यगेंद्रनाथ स्वामी
यज्ञवेदी
हनुमान धारा
'चित्रकूट निश दिन बसत प्रभु सिय लखन समेत।' जहां पर प्रभु श्रीराम का वास हो वहां पर उनके भक्त हनुमान तो रहेंगे। चित्रकूट में सबसे प्रसिद्ध स्थल हनुमान धारा का विशेष महत्व है। यहां पर श्री हनुमान जी को वह सुख और शांति मिली थी जो पूरे ब्राह्मांड में हासिल नहीं हुई। किवदंती है कि लंका दहन में हनुमान जी का पूरा शरीर काफी तप गया था। लंका विजय के बाद हनुमान जी ने अपने आराध्य प्रभु श्रीराम से शरीर के शीतलता का उपाय पूछा। श्री राम ने उन्हें उपाय बताया कि विंध्य पर्वत पर जाएं। जहां पर आदि काल के ऋषि-मुनियों ने तप किया था। उस पवित्र भूमि की प्राकृतिक सुषमा से युक्त स्थान पर जाकर तप करो। हनुमान जी ने चित्रकूट आकर विंध्य पर्वत श्रंखला की एक पहाड़ी में श्री राम रक्षा स्त्रोत का पाठ 1008 बार किया। जैसे ही उनका अनुष्ठान पूरा हुआ ऊपर से एक जल की धारा प्रकट हो गयी। जलधारा शरीर में पड़ते ही हनुमान जी के शरीर को शीतलता प्राप्त हुई। आज भी यहां वह जल धारा के निरंतर गिरती है। जिस कारण इस स्थान को हनुमान धारा के रूप में जाना जाता है।
चित्रकूट में महासती अनुसुइया एवं उनके पति अत्रि मुनि का अति प्राचीन आश्रम मंदाकिनी के किनारे स्फटिक शिला एवं कामतानाथ जी से 15 किलोमीटर दक्षिण में स्थित है। यहाँ सती अनुसुइया और अत्रि से संबंधित ऐतिहासिक झाँकियाँ निर्मित हैं। इसी आश्रम से मंदाकिनी गंगा प्रकट हुई हैं। इस आश्रम में अत्रि मुनी, अनुसुइया, दत्तात्रेयय और दुर्वाशा मुनी की प्रतिमा स्थापित हैं।
इसी स्थान पर अनुसुइया ने तीन ब्रह्मा, विष्णु और महेश को अपनी दिव्य शक्ति से बाल स्वरूप बनाकर पलने में पौढ़ा दिया था। क्योंकि ये तीनों माँ अनुसुइया की परीक्षा लेने आये थे। सती अनुसुइया द्वारा ब्रह्मा, विष्णु और महेश को बालक बना देने और अपना दुग्धपान कराने की गीतों में कथा है-
माता अनुसुइया ने डाल दिया पालन,
झूल रहे तीन देव बन करके लालना।
मारे खुशी के मैया फुली नहीं समाती है,
गोदी में लेती कभी पालना झुलाती है।
उनके भाग्य की आज को करे सराहना,
झूल रहे तीन देव बन करके लालना।.....
जोगनी शिला
प्रुभु श्रीराम की तपोभूमि में सती अनुसुइया आश्रम पर स्थित इस जोगनी शिला में पूजा अर्चना करने से भी प्रकार की प्रेतबाधाओं को अंत होता है ऐसी मान्यता है.
जानकी कुण्ड
रामघाट से 2 किलोमीटर की दूरी पर मंदाकिनी का मनमोहक नजारा दिखाई देता है। नदी के नीले पानी और हरे-भरे पेड़ों से यह स्थान बहुत ही सुरम्य लगता है। जानकी कुंड तक जाने के दो रास्ते हैं एक तो आप यहाँ नाव के जरिए पहुँच सकते हैं और दूसरे आप हरियाली देखते हुए सड़क मार्ग से भी जा सकते हैं। मंदाकिनी नदी के किनार जानकी कुण्ड स्थित है। जनक पुत्री होने के कारण सीता को जानकी कहा जाता था। माना जाता है कि जानकी यहां स्नान करती थीं। कुण्ड के बगल में माता जानकी के पद चिंह भी देखे जा सकते है। जानकी कुण्ड के समीप ही राम जानकी रघुवीर मंदिर और संकट मोचन मंदिर है।
माता अनुसुइया ने डाल दिया पालन,
झूल रहे तीन देव बन करके लालना।
मारे खुशी के मैया फुली नहीं समाती है,
गोदी में लेती कभी पालना झुलाती है।
उनके भाग्य की आज को करे सराहना,
झूल रहे तीन देव बन करके लालना।.....
जोगनी शिला
प्रुभु श्रीराम की तपोभूमि में सती अनुसुइया आश्रम पर स्थित इस जोगनी शिला में पूजा अर्चना करने से भी प्रकार की प्रेतबाधाओं को अंत होता है ऐसी मान्यता है.
जानकी कुण्ड
रामघाट से 2 किलोमीटर की दूरी पर मंदाकिनी का मनमोहक नजारा दिखाई देता है। नदी के नीले पानी और हरे-भरे पेड़ों से यह स्थान बहुत ही सुरम्य लगता है। जानकी कुंड तक जाने के दो रास्ते हैं एक तो आप यहाँ नाव के जरिए पहुँच सकते हैं और दूसरे आप हरियाली देखते हुए सड़क मार्ग से भी जा सकते हैं। मंदाकिनी नदी के किनार जानकी कुण्ड स्थित है। जनक पुत्री होने के कारण सीता को जानकी कहा जाता था। माना जाता है कि जानकी यहां स्नान करती थीं। कुण्ड के बगल में माता जानकी के पद चिंह भी देखे जा सकते है। जानकी कुण्ड के समीप ही राम जानकी रघुवीर मंदिर और संकट मोचन मंदिर है।
स्फटिक शिला
एक बार चुनि कुसुम सुहाए। निज कर भूषन राम बनाए॥
सीतहि पहिराए प्रभु सादर। बैठे फटिक सिला पर सुंदर॥
यह विशाल शिला चित्रकूट के दक्षिण में घने जंगली क्षेत्र में स्थित है। माना जाता है कि इस शिला में भगवान राम के पैरों के निशान मुद्रित हैं। मंदाकिनी नदी के तट पर स्थित यह शिला जानकी कुंड से कुछ दूरी पर है। मंदाकिनी के किनारे स्फटिक शिला पर बैठकर भगवान राम और मां सीता चित्रकूट की प्राकृतिक सुंदरता को निहारा करते थे। यहीं पर उन्होंने मानव रूप में कई लीलाएं कीं। इसी स्थान पर राम ने फूलों से बने आभूषण से मां सीता का श्रृंगार किया था। मान्यता है कि जब सीता इस शिला पर बैठीं थी, जब इन्द्र के पुत्र जयंत ने कौवे का वेश धर सीता को चोंच मारी थी। रामचिरत मानस के मुताबिक एक बार सुंदर फूल चुनकर श्री रामजी ने अपने हाथों से भाँति-भाँति के गहने बनाए और सुंदर स्फटिक शिला पर बैठे हुए प्रभु आदर के साथ वे गहने श्री सीताजी को पहना रहे थे तभी देवराज इन्द्र का मूर्ख पुत्र जयन्त कौए का रूप धरकर श्री रघुनाथजी का बल देखना चाहा। भगवान के बल की परीक्षा करने के लिए कौआ बनकर सीताजी के चरणों में चोंच मारा। जब माता सीता के पैर से रक्त बहने लगा तो श्री रघुनाथ जी ने धनुष पर सींक (सरकंडे) का बाण बनाकर मारा। जो उसकी आंख में लगा। तभी से कौआ एक आंख को होता है। सीता चरन चोंच हति भागा। मूढ़ मंदमति कारन कागा॥
चला रुधिर रघुनायक जाना। सींक धनुष सायक संधाना॥
सीतहि पहिराए प्रभु सादर। बैठे फटिक सिला पर सुंदर॥
यह विशाल शिला चित्रकूट के दक्षिण में घने जंगली क्षेत्र में स्थित है। माना जाता है कि इस शिला में भगवान राम के पैरों के निशान मुद्रित हैं। मंदाकिनी नदी के तट पर स्थित यह शिला जानकी कुंड से कुछ दूरी पर है। मंदाकिनी के किनारे स्फटिक शिला पर बैठकर भगवान राम और मां सीता चित्रकूट की प्राकृतिक सुंदरता को निहारा करते थे। यहीं पर उन्होंने मानव रूप में कई लीलाएं कीं। इसी स्थान पर राम ने फूलों से बने आभूषण से मां सीता का श्रृंगार किया था। मान्यता है कि जब सीता इस शिला पर बैठीं थी, जब इन्द्र के पुत्र जयंत ने कौवे का वेश धर सीता को चोंच मारी थी। रामचिरत मानस के मुताबिक एक बार सुंदर फूल चुनकर श्री रामजी ने अपने हाथों से भाँति-भाँति के गहने बनाए और सुंदर स्फटिक शिला पर बैठे हुए प्रभु आदर के साथ वे गहने श्री सीताजी को पहना रहे थे तभी देवराज इन्द्र का मूर्ख पुत्र जयन्त कौए का रूप धरकर श्री रघुनाथजी का बल देखना चाहा। भगवान के बल की परीक्षा करने के लिए कौआ बनकर सीताजी के चरणों में चोंच मारा। जब माता सीता के पैर से रक्त बहने लगा तो श्री रघुनाथ जी ने धनुष पर सींक (सरकंडे) का बाण बनाकर मारा। जो उसकी आंख में लगा। तभी से कौआ एक आंख को होता है। सीता चरन चोंच हति भागा। मूढ़ मंदमति कारन कागा॥
चला रुधिर रघुनायक जाना। सींक धनुष सायक संधाना॥
गुप्त गोदावरी
चित्रकूट से 18 किमी की दूरी पर गुप्त गोदावरी स्थित हैं। यहां दो गुफाएं हैं। एक गुफा चौड़ी और ऊंची है। प्रवेश द्वार संकरा होने के कारण इसमें आसानी से नहीं घुसा जा सकता। एक गुफा सूखी है, यहां पर गोदावरी मां के साथ ही अन्य देवता गण स्थापित है और यहां पर राजा इंद्र का पुत्र जयंत खटखटा चोर के रूप में आज भी लटका हुआ है। दूसरी गुफा लंबी और संकरी है जिससे हमेशा पानी बहता रहता है। कहा जाता है कि इस गुफा के अंत में राम और लक्ष्मण ने दरबार लगाया था। एेसी मान्यता है कि प्रभु श्रीराम ने माता सीता के स्नान को गोदावरी मैया का प्रगट किया था। इसे गुप्त गोदावरी कहते है क्योंकि यहा माता सीता का स्नान कुंड है। पाताल तोड़ कर गोदावरी तभी से लगातार प्रवाहमान है।
महर्षि वाल्मीकि की तपोस्थली लालापुर चित्रकूट-इलाहाबाद राष्ट्रीय राजमार्ग में है। झुकेही से निकली तमसा नदी इस आश्रम के समीप से बहती हुई सिरसर के समीप यमुना में मिल जाती है। पूरी पहाडी पर अलंकृत स्तंभ और शीर्ष वाले प्रस्तर खंड बिखरे पडे हैं जिनसे इस स्थल की प्राचीनता का बोध होता है। यहां पर चंदेलकालीन आशांबरा देवी का मंदिर भी है। यहाँ भारतीय संस्कृति की रक्षा के लिए संस्कृत विद्यालय भी है। कहा जाता है कि वाल्मीकि जी ने रामायण की रचना यहीं पर की थी, जो कि संस्कृत भाषा का आदि काव्य माना जाता है वनवास के समय भगवान श्रीराम यहाँ आकर वाल्मीकि जी से अपने निवास के लिए स्थान पूॅछा, तो श्री महर्षि जी ने चित्रकूट में रहने के लिए निर्देश किया था- जैसे श्री तुलसीदास जी मानस में कहा है- चित्रकूट गिरी करहु निवासू।
जहँ तुम्हार सब भाँति सुपासू।।
भऱतकूप
चित्रकूट से लगभग 15 किलोमीटर दूर भरतकूप स्थान है। भरतकूप मंदिर में एक कूप है जिसका धार्मिक महत्व बाबा तुलसीदास ने रामचरित मानस में वर्णित किया है। जब प्रभु श्रीराम चौदह साल का वनवास काटने के लिए चित्रकूट आए थे। उस समय भरत जी को माता कैकेयी के क्रियाकलाप कर काफी दुख हुआ था। वे अयोध्या की जनता के साथ राम को मनाने चित्रकूट आए थे। साथ में प्रभु का राज्याभिषेक करने को समस्त तीर्थो की जल भी लाए थे लेकिन भगवान राम चौदह साल वन रहने को दृढ़ प्रतिज्ञ थे। इस पर भरत जी काफी निराश हुए और जो जल व सामग्री प्रभु के राज्याभिषेक को लाए थे उसको इसी कूप में छोड़ दिया था और भगवान राम की खड़ाऊ लेकर लौट गए थे। यहां पर बना भरतकूप मंदिर भी अत्यंत भव्य है। इस मंदिर में भगवान राम, सीता, लक्ष्मण, भरत व शत्रुघन की मूर्तियां विराजमान है। सभी प्रतिमाएं धातु की है। वास्तुशिल्प के आधार पर मंदिर काफी प्राचीन है। माना जाता है कि बुंदेल शासकों के समय में मंदिर का निर्माण हुआ था। लाखों श्रद्धालु मकर संक्रांति में पहुंच कर कूप में स्नान कर पुण्य लाभ लेते है। यह वह स्थान है जहां पर स्नान से समस्त तीर्थो का पुण्य मिलता है।
जहँ तुम्हार सब भाँति सुपासू।।
भऱतकूप
चित्रकूट से लगभग 15 किलोमीटर दूर भरतकूप स्थान है। भरतकूप मंदिर में एक कूप है जिसका धार्मिक महत्व बाबा तुलसीदास ने रामचरित मानस में वर्णित किया है। जब प्रभु श्रीराम चौदह साल का वनवास काटने के लिए चित्रकूट आए थे। उस समय भरत जी को माता कैकेयी के क्रियाकलाप कर काफी दुख हुआ था। वे अयोध्या की जनता के साथ राम को मनाने चित्रकूट आए थे। साथ में प्रभु का राज्याभिषेक करने को समस्त तीर्थो की जल भी लाए थे लेकिन भगवान राम चौदह साल वन रहने को दृढ़ प्रतिज्ञ थे। इस पर भरत जी काफी निराश हुए और जो जल व सामग्री प्रभु के राज्याभिषेक को लाए थे उसको इसी कूप में छोड़ दिया था और भगवान राम की खड़ाऊ लेकर लौट गए थे। यहां पर बना भरतकूप मंदिर भी अत्यंत भव्य है। इस मंदिर में भगवान राम, सीता, लक्ष्मण, भरत व शत्रुघन की मूर्तियां विराजमान है। सभी प्रतिमाएं धातु की है। वास्तुशिल्प के आधार पर मंदिर काफी प्राचीन है। माना जाता है कि बुंदेल शासकों के समय में मंदिर का निर्माण हुआ था। लाखों श्रद्धालु मकर संक्रांति में पहुंच कर कूप में स्नान कर पुण्य लाभ लेते है। यह वह स्थान है जहां पर स्नान से समस्त तीर्थो का पुण्य मिलता है।
रामशैय्या
राम-सीता के शरीर की आकृति वाली शिला
चित्रकूट से भरतकूप जाने में बीच रास्ते में रामशैया नामक स्थान पडता है। कामदगिरि से महज एक किलोमीटर दूर इस स्थान पर राम ने चित्रकूट में पर्दापण करने के बाद पहली रात्रि का विश्राम किया था। आज भी इस स्थान में भगवान राम व माता सीता के शरीर की लेटी आकृति शिला में उभरी है। थोड़ी दूर पर एक और शिला है जिसमें भइया लक्ष्मण के शरीर की आकृित उमरी है।
धारकुंडी आश्रम
चित्रकूट से लगभग पचास किलोमीटर दूर जंगलों के मध्य यह दिव्य स्थान है। विंध्य पर्वत श्रृंखलाओं में स्थित धारकुंडी में प्रकृति की अनुपम छटा देखने को मिलती है। पर्वत की कंदराओं में साधना स्थल, दुर्लभ शैल चित्र, पहा़ड़ों से अनवरत बहती जल की धारा, गहरी खाईयां और चारों ओर से घिरे घनघोर जंगल के बीच परमहंस आश्रम है जो पर्यटन और अध्यात्म को एक सूत्र में पिरोता है। यहां बहुमूल्य औषधियां और जीवाश्म भी पाए जाते हैं। एेसी मान्यता है कि महाभारत काल में युधिष्ठिर और दक्ष का प्रसिद्ध संवाद यहीं के एक कुंड में हुआ था जिसे अघमर्षण कुंड कहा जाता है। यह कुंड भूतल से करीब 100 मीटर नीचे है। धारकुंडी मूलतः दो शब्दों से मिलकर बना है। धार तथा कुंडी यानी जल की धारा और जलकुंड। विंध्याचल पर्वत श्रेणियों के दो पर्वत की संधियों से प्रस्फुटित होकर प्रवाहित होने वाली जल की निर्मल धारा यहां एक प्राकृतिक जलकुंड का निर्माण करती है। धारकुंडी में प्रकृति का स्वर्गिक सौंदर्य आध्यात्मिक ऊर्जा का अक्षय स्रोत उपलब्ध कराता है। यहां जनवरी में जहां न्यूनतम तापमान 2 से 3 डिग्री रहता है वहीं अधिकतम तापमान 18 डिग्री रहता है। जून माह में न्यूनतम 20 डिग्री तथा अधिकतम तापमान 45 डिग्री रहता है। अनुसूया आश्रम में करीब 11 वर्ष साधना के बाद सच्चिदानंद जी महाराज 1956 में यहां आए और अपनी आध्यात्मिक शक्ति से यहां के प्राकृतिक सौंदर्य को आश्रम के माध्यम से एक सार्थक रूप दिया। उनके आश्रम में अतिथियों के लिए रहने और भोजन की मुफ्त में उत्तम व्यवस्था है।
ऋषियन आश्रम
ऋषियन आश्रम चित्रकूट से इलाहाबाद जाते समय मऊ तहसील से उत्तर दिशा में 14 किलोमीटर दूर है। इसे चौरासी हजार देवताओं की साधनास्थली माना जाता है। बाणासुर की मां बरहा के नाम पर एक गांव बरहा कोटरा है। जहां पर प्रख्यात शिव मंदिर के ध्वंसावशेष यहां पर बिखरे पडे दिखाई देते हैं। पुरातत्वविद बाणासुर के दुर्ग के पास बने बांध के ध्वंसावशेषों को सिंधु काल की सभ्यता के समकालीन बताते हैं। आश्रम की पहाडी पर आदि काल के मानव निर्मित शैल चित्रों के साथ ही बौद्ध मूर्तियों के भग्नावशेष भी देखने योग्य हैं। इस पौराणिक स्थल में आज भी दो प्राकृतिक गुफाएं हैं एक गुफा में पांच अद्वितीय शिवलिंग विराजमान हैं। इस गुफा में शिवलिंग को स्पर्श करती अविरल जलधारा बहती रहती है। जबकि दूसरी गफा को बंद कर दिया गया है। बताते हैं कि ऋषियन में पाताल नरेश वाणासुर के अलावा तमाम ऋषियों ने तपस्या की थी। इसीलिए प्रभु राम वनवास के लिए चित्रकूट जाते समय यहां पर रुके थे और ऋषियों का आशीर्वाद लिया था। ऋषियन में आज भी पुराने गौरव को दोहराते सात मंदिरों के अवशेष हैं। यहां शिवमंदिर, गणेश मंदिर, दुर्गा मंदिर, सूर्य मंदिर आदि हैं। सूर्य मंदिर में सात घोड़ों का रथ भी बना है। गुफा के बाहर यक्षिणी की मूर्तियां बनी हुई है। चर्चित है कि ऋषियन में यक्ष यक्षिणी भी आते थे। ऐसे ही पीपल के पेड़ पर अजीब प्रकार की आकृतियां बनी हुई हैं जिन्हें ग्रामीण देवी देवताओं की आकृति मानते हैं।
सूर्य कुंड आश्रम
चित्रकूट से दस किलोमीटर दूर इस आश्रम में ऋषि बैखानस ने सूर्य भगवान की अराधना की थी। एेसी मान्यता है कि त्रेता युग में भगवान सूर्य देव वनवासी राम से मिलने आए थे। वह अपने रथ पर सवार होकर आए थे। जहां आज भी सूर्य भगवान पत्थरों में रथ के साथ विराजमान है। बताते है कि सूर्य के तेज से यहां पर पत्थर पिघल गए थे जिसके निशान देखे जा सकते है। बगल में एक कुंड है जिसकी लंबाई अनंत है माना जाता है कि यह कुंड पाताल में मिला है। जो सूर्य के रथ के वेग के कारण हुआ था। इसी कुंड को सूर्य कुंड कहा जाता है। यहां पर सूर्य भगवान के तप्त वेग के प्रभाव से यहां मंदाकिनी भी पश्चिम मुखी होकर बहती है। इसी आश्रम में वर्ष 1958 से आज तक नवरत रामनाम संकीर्तन व अखंड ज्योति जल रही है।
सोमनाथ मंदिर(चर)
दक्षिण भारत के सोमनाथ के मंदिर की तर्ज पर नाम पर बना शिल्प कला का अद्भुत नमूना। यहां पर शिव लिंग के अनेको प्रकार लोगों को मंत्रमुग्ध कर देते हैं।
पत्थर की मूर्तियां मंदिर के दरवाजे पर बिखरी पड़ी हुई हैं जो इस बात को साबित करती है कि मंदिर बहुत पुराना है। इसका स्थापत्य भी अपने आपमें बेजोड़ है। मंदिर के चारों ओर गुंबदों में मूर्तिया बनी हैं। वैसे मंदिर की भव्यता बताती है कि यह पूरी पहाड़ी में बना था लेकिन चारों ओर आज मैदान है। सिर्फ पहाड़ी के बीच में खंडहर एक मंदिर रूप में बचा है। जिसमें अष्ठकोणीय मंडप है और छत गिर चुकी है। गर्भगृह में एक शिवलिंग स्थापित है। वैसे जिस पहाड़ी में मंदिर बना है उसके चारों ओर पत्थर की खंडित तमाम मूर्तियां पड़ी है। लोगों का ऐसा भी मानना है कि इस मंदिर का एक खंड नीचे भी है। मंदिर की शोभा को पश्चिम दिशा में बनाने वाली बाल्मीकि नदी और बढ़ा देती है। इसी के पास बरकोट का किला भी है जो अब नेस्तनाबूत हो गया है।
शबरी जल प्रपात
मारकुंडी के निकट पर्वतों के बीच में चट्टानों से निर्झरित होती विशाल जलराशि जब विशाल काय कुंड पर गिरती है तो उसे देखकर लोग आश्चर्य चकित रह जाते हैं। बरसात के दिनों शबरी प्रपात के नाम से विख्यात विशाल कुंड और झरना बाहर से आने वाले पर्यटकों का मन मोह लेता है। यह स्थान शासन की उपेक्षा के चलते अभी ज्यादा ख्याति अर्जित नही कर सका है। अगर इस स्थान पर शासन स्तर पर ध्यान दिया जाये तो यह विशेष स्थान न केवल बाहर से आने वालों के लिये एक विशेष स्थान सिद्ध होगा बल्कि गरीब ग्रामवासियों के लिये रोजगार के साधन मुहैया कराने का भी बड़ा काम करेगा।
गणेश बाग
मुख्यालय से सटे मिनी खजुराहो के नाम से यह स्थान । मुम्बई में बेसिन
की संधि के बाद यहां की जागीर मराठों को देने के बाद उनके वंशज अमृतराय द्वारा बनवाया गया शिल्प का उद्भुत नमूना, इसे मिनी खजुराहो के नाम से भी जाना जाता है। यहां की सात खंडों की बावली भी दर्शनीय है। भारतीय वास्तुकला की अनमोल धरोहर गणेश बाग का निर्माण लगभग 1828 ई. में पेशवा नरेश विनायक राव पेशवा ने कराया था। उन्होंने यहां गणेश बाग के साथ पुरानी कोतवाली किला, गोल तालाब और नारायण बाग भी बनवाया था। गणेश बाग लगभग एक किलोमीटर वर्ग क्षेत्रफल में बना है। गणेश बाग की दीवारों को बारीक-बरीक काट कर देवी देवताओं की मूर्तियों को गढ़ा गया है। एक खूबसूरत तालाब के किनारे बनाए गए इस षठकोणी पंच मंदिर में नागर शैली के दर्शन होते हैं। मंदिर की बाहरी दीवारों पर की गई चित्रकारी में कहीं सात अश्वों के रथ पर सवार सूर्यदेव हैं, कहीं विष्णु हैं तो कहीं अन्य देवी देवताओं का समूह है। मंदिर में प्रयोग नागर शैली के कारण ही गणेश बाग को मिनी खजुराहो की संज्ञा दी जाती है। नागर शैली की विशेषता है कि ऊंची जगत बनाकर मूर्ति बनाई जाती है। यहां के मंदिर और खजुराहो के मंदिर में बनी मूर्तियां एक जैसी हैं ।गणेश बाग में एक आकर्षक बाबली भी है जो सात खंड की है। इसमें छह खंड पानी में डूबे रहते हैं जब एक खंड ही खुला है। इसकी भव्यता दर्शाती है कि बावली भी अपने में एक अलग रही होगी। इसी के बगल में एक चहार दीवारी है जिसे राजा ने घुड़ सवारी के लिए बननाया था, लेकिन बावली और मैदान की दीवारे नेस्तनाबूत होने लगी है। वजह है कि पुरातत्व विभाग की ओर से ध्यान नहीं दिया जा रहा।
मडफा किला
धर्मनगरी से बीस किलो मीटर दूर घुरेटनपुर के पास मड़फा पहाड़ पर भगवान शकर अपने पंचमुखी रूप में सशरीर विद्यमान हैं। मड़फा के शिवमंदिर पहुंचने के लिए भरतकूप से सीधा मार्ग है करीब दस किलोमीटर पर मानपुर गांव है इस गांव से सटा मड़फा पहाड़ है। करीब दो सौ मीटर की ऊंची चढ़ाई चढ़कर इस दिव्य मंदिर में पहुंचा जा सकता है जिसमें भगवान शंकर की पंचमुखी प्रतिमा विराजमान है। घनघोर जंगल में स्थित इस शिवालय में लोगों के मन की मुरादें पूरी होती हैं। ऐसी मान्यता है कि यहां पर ऋषि मांडव्य ने तपस्या की थी। इसी तपोस्थली पर महाराज दुष्यंत की पत्नी शकुंतला ने पुत्र भरत को जन्म दिया था। शिवमंदिर से करीब पांच सौ मीटर पर एक तालाब है। जिसकी भी अपनी मान्यता है लोग बताते हैं इस तालाब में स्नान से कुष्ठ जैसे त्वचा रोग का नाश हो जाता है। इसी तालाब के पास चंदेलकालीन वैभवशाली नगर के ध्वंशावशेष भी देखे जा सकते हैं। यहा पर जैन धर्म के प्रर्वतक आदिनाथ के भी यहां पर आने की बात कही जाती है। महाशिवरात्रि व सावन के सोमवार में यहां मेला लगता है। धार्मिक, ऐतिहासिक और पौराणिक धरोहर को केंद्रीय पुरातत्व विभाग ने संरक्षित है।
तुलसीतीर्थ राजापुर
मानस मंदिर में उनके द्वारा हस्तलिखित रामचरित मानस का अयोध्या कांड रखा हुआ है। जिसकी देखरेख बाबा तुलसी के प्रथम शिष्य राजापुर निवासी गनपतराम के वंशज कर रहे हैं। राजापुर में तुलसीदास द्वारा स्थापित संकट मोचन हनुमान की सिद्ध मूर्ति है। तुलसीदास की जन्म कुटी के ठीक सामने यमुना नदी के पास उत्तर में महेवा गांव है। जहां तुलसीदास की ससुराल थी।
कैसे आएं चित्रकूट
वायु मार्ग
चित्रकूट में हवाई अड्डा का शुभारंभ हो गया है लेकिन अभी उड़ान शुरु नहीं हुई। ऐसे में नजदीकी एयरपोर्ट खजुराहो है। खजुराहो चित्रकूट से 185 किमी दूर है। लखनऊ और इलाहाबाद हवाई अड्डों से भी चित्रकूट पहुंचा जा सकता है। इलाहाबाद और लखनऊ से बस और ट्रेनें लगातार उपलब्ध हैं।
रेल मार्ग
चित्रकूट से 8 किलोमीटर की दूरी चित्रकूटधाम कर्वी निकटतम रेलवे स्टेशन है। इलाहाबाद, जबलपुर, दिल्ली, झांसी, हावड़ा, आगरा, मथुरा, लखनऊ, कानपुर, ग्वालियर, झांसी, रायपुर, कटनी, मुगलसराय, वाराणसी आदि शहरों से यहां के लिए रेलगाडिय़ां चलती हैं। इसके अलावा शिवरामपुर रेलवे स्टेशन पर उतकर भी बसें और टू व्हीलर लिए जा सकते हैं। शिवरामपुर रेलवे स्टेशन की चित्रकूट से दूरी 4 किलोमीटर है। जिले का निकटतम जंक्शन स्टेशन मानिकपुर 25 किमी पर है। जहां से बंबई, गुजरात, म.प्र., कलकत्ता, बिहार, आसाम,छत्तीशगढ़ के अलावा दिल्ली के लिये ट्रेन सुविधा उपलब्ध है।
सड़क मार्ग
चित्रकूट के लिए इलाहाबाद, बांदा, झांसी, महोबा, कानपुर, छतरपुर, सतना, फैजाबाद, लखनऊ, मैहर आदि शहरों से नियमित बस सेवाएं हैं। दिल्ली से भी बांदा होते हुए चित्रकूट के लिए बस सेवा उपलब्ध है। शिवरामपुर से भी बसें और टू व्हीलर उपलब्ध हैं यहां से चित्रकूट की दूरी 4 किलोमीटर है।
कहां रूकें
चित्रकूट में रूकने के लिये वैसे तो तमाम धर्मशालायें, लाज और यात्री निवास हैं। लेकिन इनमें प्रमुख रूप से रूकने के स्थान उ.प्र. और म.प्र. के टूरिस्ट बंगले, जयपुरिया स्मृति भवन, कामदगिरि भवन, विनोद लाज, पंचवटी ,रामदरबार होटल आदि हैं। वैसे हर मठ और मंदिर में अपने गेस्ट हाउस बना रखे हैं। उत्तर प्रदेश सरकार का विश्राम गृह कर्वी में जबकि मप्र सरकार का विश्राम गृह सिरसावन में है। इसके साथ ही दीन दयाल शोध संस्थान का आधुनिक सुविधाओं से युक्त गेस्ट हाउस आरोग्य धाम में व जानकीकुंड चिकित्सालय का गेस्ट हाउस है।
कब करे सैर
चित्रकूट की सैर तो वैसे किसी भी माह में की जा सकती है लेकिन आठ माह आस्था व प्रकृति की संगम स्थली के लिए मुरीद है। जुलाई से फरवरी तक यहां का मौसम सैर सपाटा के अनुकूल रहता है। विंध्य पर्वत में हरियाली रहती है तो झरने कल-कल बहते रहते है। बरसात के दिनों में शबरी जलप्रपात अदभुद छटा को बिखेरता है। जिसका नजारा कुछ अलग ही है।
हेमराज कश्यप
कहां रूकें
चित्रकूट में रूकने के लिये वैसे तो तमाम धर्मशालायें, लाज और यात्री निवास हैं। लेकिन इनमें प्रमुख रूप से रूकने के स्थान उ.प्र. और म.प्र. के टूरिस्ट बंगले, जयपुरिया स्मृति भवन, कामदगिरि भवन, विनोद लाज, पंचवटी ,रामदरबार होटल आदि हैं। वैसे हर मठ और मंदिर में अपने गेस्ट हाउस बना रखे हैं। उत्तर प्रदेश सरकार का विश्राम गृह कर्वी में जबकि मप्र सरकार का विश्राम गृह सिरसावन में है। इसके साथ ही दीन दयाल शोध संस्थान का आधुनिक सुविधाओं से युक्त गेस्ट हाउस आरोग्य धाम में व जानकीकुंड चिकित्सालय का गेस्ट हाउस है।
कब करे सैर
चित्रकूट की सैर तो वैसे किसी भी माह में की जा सकती है लेकिन आठ माह आस्था व प्रकृति की संगम स्थली के लिए मुरीद है। जुलाई से फरवरी तक यहां का मौसम सैर सपाटा के अनुकूल रहता है। विंध्य पर्वत में हरियाली रहती है तो झरने कल-कल बहते रहते है। बरसात के दिनों में शबरी जलप्रपात अदभुद छटा को बिखेरता है। जिसका नजारा कुछ अलग ही है।
हेमराज कश्यप
द्वारिकापुरी -कर्वी
चित्रकूट (उत्तर प्रदेश)
चित्रकूट (उत्तर प्रदेश)
मो. 7275862736, 9452031926
Comments
Post a Comment