चित्रकूट में है नाथसम्प्रदाय की प्रथम गादी
-पांच हजार वर्ष पूर्व स्वामी मंच्छिद्र नाथ महाराज की थी स्थापना
विंध्य पर्वत श्रंखला के मध्य मराठा नरेश बाजीराव पेशवा द्वितीय द्वारा अपने पुत्र अमृतराव पेशवा के नाम पर बसाया गया अमृत नगर वर्तमान कर्वी नाथ संम्प्रदाय की आध्यात्मिक स्थली रही है। नगर के मध्य स्थित बालाजी मंदिर नाथ सम्प्रदाय की प्राचीन आध्यात्मिक गौरव गाथा का बखान कर रहा है। नाथ संप्रदाय के इस पांच हजार वर्ष से प्राचीन आध्यात्मिक स्थल को स्वंय भगवान विष्णु के अवतार माने जाने वाले स्वामी मंच्छिद्र नाथ महाराज ने विश्व की प्रथम गादी स्थापित किया था। नाथ संप्रदाय की आस्था के प्रतीक इस मंदिर में आज भी मराठी संस्कृति की स्पष्ट झलक देखने को मिलती है। स्थानीय मराठों की मंदिर के प्रति विशेष रूचि में कमी के चलते तथा आम जनमानस में मंदिर की प्राचीन तथा आध्यात्मिक महत्व के प्रति अज्ञानता से यह प्राचीन मंदिर आज भी गुमनामी के अंधेरे में है। अब वर्तमान नाथ गुरू स्वामी मंगलनाथ महाराज इस जीर्ण हो चुके प्राचीन मंदिर का कायाकल्प कर चुके है।
मराठा नरेश बाजी राव पेशव द्वितीय ने वर्ष 1802 में अपने पुत्र अमृत राव पेशवा के नाम पर विन्ध पर्वत श्रंखला के मध्य वर्तमान कर्वी नगर चित्रकूट को अमृत नगर के नाम से बसाया था। भौगोलिक दृष्टि कोण से यह नगर पहले भले ही आज की तरह विकसित न रहा हो,किन्तु अध्यात्मिक दृष्टि कोण से इसका विशेष रहा है। नगर के मध्य स्थित बालाजी के मंदिर को स्वंय भगवान विष्णु का अवतार माने जाने वाले स्वामी मंच्छिद्र नाथ महाराज ने लगभग 5 हजार वर्ष पूर्व एक मठ के रूप में नाथ संप्रदाय की विश्व की प्रथम गादी स्थापित किया था। आध्यात्मिक शक्ति से परिपूर्ण बालाजी का यह प्राचीन मंदिर, साक्षात भगवान आदि नाथ का स्थान है। साथ ही नाथ संप्रदाय का प्रमुख केन्द्र है। मंदिर के संस्थापक स्वामी मंच्छिद्र नाथ महाराज ने इस मंदिर में एक गददी का निर्माण कराया था। जिसमें बैठकर उन्होंनें कई वर्षों तक धर्म का प्रचार प्रसार व साधना की थी। उनके पश्चात इस गदी में चौरंगी नाथ,गैनी नाथ,निवृत्ति नाथ,संत ज्ञानेश्वर नाथ,सत्यामल नाथ,गुस नाथ महिला संत,सत्यामल नाथ,गुस नाथ,परम हंस,ब्रम्हानन्द नाथ,काशी नाथ,विटठल नाथ,विश्व नाथ,माधव नाथ तथा वर्तमान में मंगल नाथ जी महाराज गादी का दायित्व संभाल रहे है। इस प्राचीन मंदिर में गादी संभालने के बाद महज 16वर्ष की उम्र में वृम्ह लीन होने वाले गुप्तनाथ जी महाराज की समाधि है। इसी समाधि के ऊपर बालाजी भगवान तथा देवी लक्ष्मी व भू देवी समेत अनेक देवताओं की अष्टधातु निर्मित प्राचीन प्रतिमायें स्थापित है। मंदिर में वर्ष प्रति पदा के शुभ दिन 26मार्च 1857 को गुप्त नाथ जी महाराज के समाधि के परिक्रमा मार्ग में माधव नाथ महाराज का जन्म हुआ था। इन्होंनें 10वर्ष की अल्पायु में गादी का दायित्व संभाला था। दया,क्षमा तथा भक्ति भाव से परिपूर्ण स्वामी माधव नाथ महाराज ने जीवन पर्यंत लोगो को भक्ति मार्ग में जोडने का काम किया। मंदिर के नये उत्तराधिकारी के रूप में दस वर्षीय माधव वेंकट रत्न पारखी उर्फ मंगल नाथ महाराज औरंगाबाद महाराष्ट्र का चयन हुआ, जिन्हें 3अप्रैल 1946को इसी मंदिर में आयोजित गादी अरोहण समारोह मंे उन्हें पीठ का उत्तराधिकारी नियुक्त किया गया है। मंदिर में नित्य भजन कीर्तन तथा सत्संग का कार्यक्रम शुरू हुआ,जो आज भी जारी है।
-पांच हजार वर्ष पूर्व स्वामी मंच्छिद्र नाथ महाराज की थी स्थापना
वर्तमान अधिपति योगेश्वरानंद डा. मंगलनाथ महराज और स्वामी मंच्छिद्र नाथ महाराज की मूर्ति के साथ उनके शिष्य |
विंध्य पर्वत श्रंखला के मध्य मराठा नरेश बाजीराव पेशवा द्वितीय द्वारा अपने पुत्र अमृतराव पेशवा के नाम पर बसाया गया अमृत नगर वर्तमान कर्वी नाथ संम्प्रदाय की आध्यात्मिक स्थली रही है। नगर के मध्य स्थित बालाजी मंदिर नाथ सम्प्रदाय की प्राचीन आध्यात्मिक गौरव गाथा का बखान कर रहा है। नाथ संप्रदाय के इस पांच हजार वर्ष से प्राचीन आध्यात्मिक स्थल को स्वंय भगवान विष्णु के अवतार माने जाने वाले स्वामी मंच्छिद्र नाथ महाराज ने विश्व की प्रथम गादी स्थापित किया था। नाथ संप्रदाय की आस्था के प्रतीक इस मंदिर में आज भी मराठी संस्कृति की स्पष्ट झलक देखने को मिलती है। स्थानीय मराठों की मंदिर के प्रति विशेष रूचि में कमी के चलते तथा आम जनमानस में मंदिर की प्राचीन तथा आध्यात्मिक महत्व के प्रति अज्ञानता से यह प्राचीन मंदिर आज भी गुमनामी के अंधेरे में है। अब वर्तमान नाथ गुरू स्वामी मंगलनाथ महाराज इस जीर्ण हो चुके प्राचीन मंदिर का कायाकल्प कर चुके है।
मराठा नरेश बाजी राव पेशव द्वितीय ने वर्ष 1802 में अपने पुत्र अमृत राव पेशवा के नाम पर विन्ध पर्वत श्रंखला के मध्य वर्तमान कर्वी नगर चित्रकूट को अमृत नगर के नाम से बसाया था। भौगोलिक दृष्टि कोण से यह नगर पहले भले ही आज की तरह विकसित न रहा हो,किन्तु अध्यात्मिक दृष्टि कोण से इसका विशेष रहा है। नगर के मध्य स्थित बालाजी के मंदिर को स्वंय भगवान विष्णु का अवतार माने जाने वाले स्वामी मंच्छिद्र नाथ महाराज ने लगभग 5 हजार वर्ष पूर्व एक मठ के रूप में नाथ संप्रदाय की विश्व की प्रथम गादी स्थापित किया था। आध्यात्मिक शक्ति से परिपूर्ण बालाजी का यह प्राचीन मंदिर, साक्षात भगवान आदि नाथ का स्थान है। साथ ही नाथ संप्रदाय का प्रमुख केन्द्र है। मंदिर के संस्थापक स्वामी मंच्छिद्र नाथ महाराज ने इस मंदिर में एक गददी का निर्माण कराया था। जिसमें बैठकर उन्होंनें कई वर्षों तक धर्म का प्रचार प्रसार व साधना की थी। उनके पश्चात इस गदी में चौरंगी नाथ,गैनी नाथ,निवृत्ति नाथ,संत ज्ञानेश्वर नाथ,सत्यामल नाथ,गुस नाथ महिला संत,सत्यामल नाथ,गुस नाथ,परम हंस,ब्रम्हानन्द नाथ,काशी नाथ,विटठल नाथ,विश्व नाथ,माधव नाथ तथा वर्तमान में मंगल नाथ जी महाराज गादी का दायित्व संभाल रहे है। इस प्राचीन मंदिर में गादी संभालने के बाद महज 16वर्ष की उम्र में वृम्ह लीन होने वाले गुप्तनाथ जी महाराज की समाधि है। इसी समाधि के ऊपर बालाजी भगवान तथा देवी लक्ष्मी व भू देवी समेत अनेक देवताओं की अष्टधातु निर्मित प्राचीन प्रतिमायें स्थापित है। मंदिर में वर्ष प्रति पदा के शुभ दिन 26मार्च 1857 को गुप्त नाथ जी महाराज के समाधि के परिक्रमा मार्ग में माधव नाथ महाराज का जन्म हुआ था। इन्होंनें 10वर्ष की अल्पायु में गादी का दायित्व संभाला था। दया,क्षमा तथा भक्ति भाव से परिपूर्ण स्वामी माधव नाथ महाराज ने जीवन पर्यंत लोगो को भक्ति मार्ग में जोडने का काम किया। मंदिर के नये उत्तराधिकारी के रूप में दस वर्षीय माधव वेंकट रत्न पारखी उर्फ मंगल नाथ महाराज औरंगाबाद महाराष्ट्र का चयन हुआ, जिन्हें 3अप्रैल 1946को इसी मंदिर में आयोजित गादी अरोहण समारोह मंे उन्हें पीठ का उत्तराधिकारी नियुक्त किया गया है। मंदिर में नित्य भजन कीर्तन तथा सत्संग का कार्यक्रम शुरू हुआ,जो आज भी जारी है।
Comments
Post a Comment