भैयाराम को जीवटता व संकल्प का मिला इनाम, योगी ने किया सम्मान 

                                                                                                                                                                   चित्रकूट ः  जीवटता और संकल्प से बुद्धिजीवियों को पर्यावरण संरक्षण का संदेश देने वाले अनपढ़ भैयाराम आज परिवार को खोने के बाद भी चालीस हजार पुत्रों के पिता हैं। वन विभाग के लगाए पौधों को पुत्रों की तरह पालकर बड़ा किया।  आज भारतवन में विशाल वृक्ष नजर आते हैं। इसके लिए उत्तर प्रदेश सरकार के मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने पांच जुलाई 2022 को भैयाराम को सम्मानित किया। वन महोत्सव के अवसर में पर्यापरण मित्र सम्मान से उनको नवाजा गया. है। 
बता दें कि वर्ष 2011-12 में मै उनसे पहली बार मिलने गया था। उनकी पौधों की सेवा को देखकर एक खबर दैनिक जागरण में 40 हजार पुत्रो को पिता भैयाराम शीर्षक से छापा था। जब में तत्कानीय रेंजर नरेंद्र सिंह के साथ भारत वन गया था तो देखा कि भैयाराम  मेहनत व लगन से पहरा पहाड़ की तलहटी पर भारत वन हरा-भरा करने में जुटे थे। पहाड़ के नीचे पचास हेक्टेयर की पट्टी आम, नीम, शीशम, सागौन, अमरूद, बेर आंवला आदि से लहलहा रहे थे। रेंजर नरेंद्नेर सिंह बताया था कि अपनी पत्नी और बच्चे की अकाल मौत के बाद भैयाराम वन विभाग की ओर से लगाए गए इन पेड़ों को बिना किसी मजदूरी के संतानों की तरह पालता है। तीस साल पहले उसका विवाह हुआ। फिर तीन साल बाद पत्नी चुन्नीदेवी एक बच्चे को जन्म देने के बाद स्वर्ग सिधार गई। पत्नी के गम को भुला कर वह इकलौते पुत्र गंगाराम के सहारे जीने लगा, लेकिन दो साल बाद पुत्र भी बीमारी से चल बसा। पूरी तरह टूट चुका भैयाराम बदहवास इधर-उधर घूमने लगा। इस बीच वृहद पौधरोपण कार्यक्रम ने उसे जीने की नई रोशनी दी। बकौल भैयाराम, पौधरोपण के लिए गढ्डा खुदाई के समय ही उसने संकल्प लिया कि यहां पर लगाए जाने वाले पौधों की वह पुत्र की तरह परवरिश करेगा। पौधा लगाए जाने के बाद उसने घर बार छोड़ दिया और वहीं जंगल में रहने लगा। अब वह ऐसे ही चालीस हजार संतानों का पिता है।चार साल से भीषण गर्मी और सर्दी में पौधों को खाद-पानी देते हुए भैयाराम ने  चित्रकूट को फिर से सैल सुहावन बनने का सपना देखता है।मजदूरी लूंगा तो नहीं होगा प्यार। पौधों को पुत्र की तरह पालने वाला भैयाराम गांव में मांग कर खा लेता है, लेकिन वह सरकारी मजदूरी लेने को तैयार नहीं है। वन विभाग के अधिकारियों ने कई बार उसे बिल बनाने का प्रस्ताव दिया, लेकिन उसने ठुकरा दिया था। बकौल भैयाराम यदि वह मजदूरी लेने लगेगा तो उसका पौधों से मजदूर की तरह प्यार होगा, पुत्रों की तरह नहीं। वह प्रति वर्ष अपने इन पुत्रों का जन्मोत्सव भी मनाता है। गांव के लोग भी उसके साथ शामिल होते है। लोग नाचते-गाते गांव में भारत वन तक आते हैं। मै भी कई बार उसके पुत्रों के जन्मोत्सव में शामिल हुआ। मैने देखा कि भैयाराम ने अधिकारियों को अपनी टूटी फूटी भाषा में पौधों से प्रेम का संदेश पत्थरों में लिख कर रखा है। वह ज्यादातर मौन रहता है यदि कोई उसके कुछ पूछता है तो पत्थरों में लिखे अपने भावों की ओर इशारा कर देता है।अधिकारी भी अब भैयाराम की जीवटता को सलाम करते हैं। उसको मुख्यमंत्री के हाथों सम्मानित होते देखकर काफी अच्छा लगा। वैसे यह सम्मान उसको काफी पहले मिल जाना चाहिए था। चलो देख ही सही ऐसे सम्मान और भैयाराम पैदा करते है...... 

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