ऋषियन आश्रम : पाताल नरेश वाणासुर की तपोस्थली  

ओम नम: शिवाय :::::::::

ऋषियन आश्रम प्रयागराज से चित्रकूट आते समय मऊ तहसील से उत्तर दिशा में 14 किलोमीटर दूर पड़ता है। इसे चौरासी हजार देवताओं की साधनास्थली माना जाता है। भगवान श्रीराम भी इसी रास्ते से चित्रकूट आए थे। इस का प्राकृतिक सौंदर्य लोगों को लुभाता है। यहां पर शैल चित्र भी आकर्षण के केंद्र हैं।  

इतिहास

ऋषियन आश्रम पर दो प्राकृतिक गुफाएं हैं एक गुफा में पांच अद्वितीय शिवलिंग विराजमान हैं। इस गुफा में शिवलिंग को स्पर्श करती अविरल जलधारा बहती रहती है। जबकि दूसरी गुफा को बंद है। बताते हैं कि पाताल नरेश वाणासुर इसी गुफा के रास्ते यहां पर भगवान शिव की पूजा व तपस्या करने आते थे। इसके अलावा तमाम ऋषियों ने भी यहां पर तपस्या की थी। इसीलिए प्रभु राम वनवास के लिए चित्रकूट जाते समय यहां पर रुके थे और ऋषियों का आशीर्वाद लिया था।

विशेषता

ऋषियन में पुराने गौरव को दोहराते सात मंदिरों के अवशेष हैं। यहां शिवमंदिर, गणेश मंदिर, दुर्गा मंदिर, सूर्य मंदिर आदि हैं। सूर्य मंदिर में सात घोड़ों का रथ भी बना है। गुफा के बाहर यक्षिणी की मूर्तियां बनी हुई है। ग्रामीण देवी देवताओं की आकृति मानते हैं। यहां पर सावन में हजारों श्रद्धालु पहुंचते हैं। 


इंद्रेश त्रिपाठी- पुजारी।

कैसे पहुंचे

यहां पहुंचने के लिए झांसी-मीरजापुर हाईवे के मऊ में उतरना पड़ता है यहां से टैक्सी या ई-रिक्शा के ऋषियन आश्रम पहुंच सकते हैं।

 



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