दीपदान में आस्था का समंदर श्रीराम की तपोभूमि में दीपावली अमावस्या मेला में आस्था के समंदर जैसा नजारा था। देश के कोने-कोने से आए करीब 35 लाख श्रद्धालुओं से धर्मनगरी में तिल रखने की जगह नहीं थी। फिर भी बिना किसी अप्रिय घटना के दीपदान मेला जारी था। लोग मंदाकिनी सहित कामदगिरि में घी और तेल के दिये जला सुख समृद्धि की कामना कर रहे थे। घाट में की गई सजावट व लगाई गई झालरें शोभा बढ़ा रही थी। रामघाट में प्रकाश व्यवस्था तो ऐसी थी कि कि रात को भी दिन सा उजाला था। शाम से शुरु हुआ दीपदान की सिलसिला दूसरे दिन भोर तक चलता रहा। इस दौरान धर्मनगरी का परिक्रमा मार्ग श्रद्धालुओं के सैलाब से सराबोर रहा। प्रशासन ने श्रद्धालुओं पर नजर रखने को सर्वाधिक भीड़ वाले स्थान रामघाट व कामतानाथ प्रमुख द्वार में जगह-जगह सीसीटीवी कैमरे लगाए थे। मेला क्षेत्र में वाहनों के प्रवेश पर पूरी तरह रोक थी। वैसे आस्था के सौलाब के आगे प्रशासन की व्यवस्था छिन्न-भिन्न दिखी। मान्यता है कि भगवान राम ने अपने वनवास काल का साढ़े बारह साल इसी धरा में बिताया था। उनको इस धरा के कण-कण से इतना प्रेम था कि आज...
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...शक्ति रुपेण संस्थिता अयोध्या की कुलदेवी चित्रकूट में वनदेवी प्रभू श्रीराम की तपोस्थली में स्थित एक मात्र शक्तिपीठ व प्रभू राम की कुलदेवी का है। धार्मिक नगरी अयोध्या की कुलदेवी को चित्रकूट में वनदेवी के रूप में पूजा जाता है। इस देवी मंदिर का शक्तिपीठों में 51 वां स्थान है जिनकी महिमा अपार है जो सभी की मनोकामनाओं को पूर्ण करती है। इतिहास : 'कुलदेवी कुलदेव उदारा, करहहि सास ससुर सम छाया अर्थात ये अयोध्या की कुलदेवी प्रभू श्रीराम और माता सीता की रक्षा के लिये चित्रकूट आकर स्थापित हुई थी। इस स्थान का उल्लेख देवी पुराण में 52 शक्तिपीठों में से एक शक्ति पीठ के नाम से भी है। वनदेवी को शिवानी वनदुर्गा भी कहा जाता है। बताते है कि श्रीराम जब वनवास को यहां आए थे तो माता कौसिल्या ने अपनी बहू सीता और पुत्र राम की रक्षा करने के लिये कुलदेवी को चित्रकूट में लाकर विराजमान किया था। ऐसे पहुंचे : वनदेवी शक्तिपीठ धर्मनगरी में नयागांव थाना (मध्य प्रदेश) क्षेत्र में हनुमानधारा मार्ग पर स्थिति है। जिला मुख्यालय से यह स्थान 12 किलोमीटर दूर है। यहां पहुंचने के लिए दो मार्ग है एक ...
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चित्रकूट में है नाथसम्प्रदाय की प्रथम गादी -पांच हजार वर्ष पूर्व स्वामी मंच्छिद्र नाथ महाराज की थी स्थापना वर्तमान अधिपति योगेश्वरानंद डा. मंगलनाथ महराज और स्वामी मंच्छिद्र नाथ महाराज की मूर्ति के साथ उनके शिष्य विंध्य पर्वत श्रंखला के मध्य मराठा नरेश बाजीराव पेशवा द्वितीय द्वारा अपने पुत्र अमृतराव पेशवा के नाम पर बसाया गया अमृत नगर वर्तमान कर्वी नाथ संम्प्रदाय की आध्यात्मिक स्थली रही है। नगर के मध्य स्थित बालाजी मंदिर नाथ सम्प्रदाय की प्राचीन आध्यात्मिक गौरव गाथा का बखान कर रहा है। नाथ संप्रदाय के इस पांच हजार वर्ष से प्राचीन आध्यात्मिक स्थल को स्वंय भगवान विष्णु के अवतार माने जाने वाले स्वामी मंच्छिद्र नाथ महाराज ने विश्व की प्रथम गादी स्थापित किया था। नाथ संप्रदाय की आस्था के प्रतीक इस मंदिर में आज भी मराठी संस्कृति की स्पष्ट झलक देखने को मिलती है। स्थानीय मराठों की मंदिर के प्रति विशेष रूचि में कमी के चलते तथा आम जनमानस में मंदिर की प्राचीन तथा आध्यात्मिक महत्व के प्रति अज्ञानता से यह प्राचीन मंदिर आज भी गुमनामी के अंधेरे में है। अब वर्तमान नाथ गुरू स्वामी मंगलनाथ महाराज...
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राजापुर में जन्मे थे तुलसीदास गोस्वामी तुलसीदास का जन्म संवत 1554 में सावन मास की सप्तमी को राजापुर में हुआ था। जन्म के समय रामनाम का उच्चारण करने की वजह से उनका नाम रामबोला पड़ गया था। आत्माराम दुबे और हुलसी की इस संतान का बचपन काफी अभाव में बीता लेकिन पत्नी रत्नावली के अगाध प्रेम ने उनकी जीवनधारा ही बदल दी। रामबोला बाबा नरसिंहदास के सानिध्य में आने के बाद तुलसीदास के रूप में हीरा बनकर चमके। बाबा उन्हें अयोध्या ले गए और उनका यज्ञोपवीत संस्कार कराया। तुलसीदास ने इसके बाद देश के विभिन्न तीर्थो में घूम कर रामचरित मानस को लिखा। उनकी हस्तलिखित रामचरित मानस का अयोध्या कांड राजापुर के मानस मंदिर में रखा है। बाबा की इस धरोहर की रक्षा उनके शिष्य वंशज मानस मंदिर के महंत रामाश्रय त्रिपाठी कर रहे हैं। उनके मुताबिक आज लोग बाबा की जन्मस्थली को लेकर विवाद करने लगे हैं लेकिन गोस्वामी तुलसीदास का जन्म राजापुर में हुआ था इसका सबसे बड़ा प्रमाण हस्तलिखित रामचरित मानस है। साथ ही उनके द्वारा स्थापित संकट मोचन मंदिर है। 1908 से शुरू हुआ विवाद : जब गोस्वामी तुलसीदास पैदा ह...
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आखिर ‘फ्री जोन’ का कहां फंसा है पेंच --वर्ष 1993 में केंद्रीय मंत्री अजरुन सिंह की पहल पर मध्य प्रदेश सरकार ने जारी कर दी थी --अधिसूचना 1630 अप्रैल 93 की मध्य रात्रि खत्म कर दिया था अंतर्राज्यीय चेक पोस्ट इन स्थान व मार्ग को किया था शामिल गुप्त गोदावरी, सती अनुसुइया आश्रम, स्फटिक शिला, जानकीकुंड, प्रमोदवन, कामतानाथ (कामदगिरि), सीताचरण, हनुमानधारा, सीतारसोई, कोटितीर्थ, देवांगना, रामघाट, बांके बिहारी, वाल्मिकी आश्रम, भरतकूप, राजापुर हेमराज कश्यप, चित्रकूट _चित्रकूट में रम रहे रहिमन अवध नरेश, जापर विपदा पड़त है सो आवत यदि देश।। रहीम दास का यह दोहा बताता है कि विपत्तियों को हरने वाली प्रभु श्रीराम की तपोभूमि है। लेकिन वह खुद संकट में घिरी है दो प्रदेश सरकार के पाटों के बीच पिस रही है। इस धरा को ‘फ्री जोन’ बनाने की मांग काफी असरे से हो रही है लेकिन आज तक लोगों की आस पूरी नहीं हुई। जबकि वर्ष 1993 में ही दोनों सूबे के राज्यपाल में आम सहमति बन गई थी और मध्य प्रदेश परिवहन विभाग ने ‘फ्री जोन’ की अधिसूचना भी जारी कर दी...
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आंसू बहा रही धरोहरें......... गोड़ा मंदिर (भरतकूप) शासन-प्रशासन की उदासीनता ने जिले की तमाम ऐतिहासिक इमारतों को खंडहर में तब्दील कर दिया है। उनमें से एक भरतकूप के पास बना गोड़ा मंदिर है। गुप्तकालीन इस इमारत की वास्तुकला देखने लायक है लेकिन अब सिर्फ उसके निशान बचे है। पुरातत्व विभाग इस इमारत को बचाने का जिम्मा तो लिए है मगर उसके आसपास बेधड़क अवैध खनन जारी है और खनन विभाग आंख मूंदे है। जिले में ऐतिहासिक व पौराणिक इमारतों की फेहरिस्त बहुत लंबी है लेकिन कुछ गुमनाम है तो कुछ संरक्षित होने के बाद भी देखरेख के अभाव में अपना अस्तित्व खोती जा रही है। इन्हीं में एक गोड़ा मंदिर है जो जिला मुख्यालय से मात्र बीस किलोमीटर दूर है। इतिहासकारों की माने तो इसका निर्माण गुप्तकालीन शासक ने कराया था। मंदिर की बनावट से लगता है कि यह शिवालय रहा होगा लेकिन अब इस मंदिर में कोई मूर्ति नहीं है। सिर्फ मंदिर के नाम पर पत्थरों के खंड का बना एक खंडहर है। कुछ पत्थरों में नक्काशी भी है लेकिन इसे देखने कोई जाता नहीं है। कारण है कि पुरातत्व विभाग में दर्ज होने के बाद भी गुमनाम है। पहाड़ों के पीछे छिपी इस इमारत मे...